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Founder of Jodhpur : Rao Jodha | जोधपुर के संस्थापक, जिन्होंने अपना राज्य पुनः पाने हेतु 15 वर्षों तक मेवाड़ की सेना के साथ युद्ध किया | राव जोधा – History of Jodhpur

Founder of Jodhpur : Rao Jodha | जोधपुर के संस्थापक, जिन्होंने अपना राज्य पुनः पाने हेतु 15 वर्षों तक मेवाड़ की सेना के साथ युद्ध किया | राव जोधा – History of Jodhpur
Saurabh Soni

क्या आप जानते हैं, जोधपुर नगर की नींव रखने वाले राव जोधा मारवाड़ वापस पाने के लिए 15 वर्षों तक मेवाड़ की सेना से लड़ते रहे और आखिर में सफल हुए. जिसके बाद मारवाड़ पर कोई विजय नहीं पा सका. यहाँ तक की मुग़ल भी कभी मारवाड़ पर पूर्ण अधिकार नहीं पा सके थे. कौन थे राव जोधा और क्या है उनकी इस अजेय सफलता का कारण ? आइये जानते है.

राव जोधा मारवाड़ राज्य के संस्थापक राव सीहा के वंशज थे. उनका जन्म 1416 ईं. में हुआ था. उनके पिता राव रणमल को मारवाड़ का उत्तराधिकारी नहीं बनाये जाने के कारण वह मेवाड़ नरेश राणा लाखा के पास चले गये और मेवाड़-सेना की सहायता से 1426 ईं. में मारवाड़ दुर्ग पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया. उस समय मारवाड़ की राजधानी मंडोर थी

परन्तु यह अधिकार ज्यादा समय नहीं रह सका. कुछ वर्षों के पश्चात् मेवाड़ के सरदारों ने तत्कालीन नरेश राणा कुम्भा को रणमल के विरुद्ध बहका दिया और इस कारण 1438 ईं. में सोते हुए राव रणमल की हत्या कर दी गयी. मंडोर–दुर्ग पर मेवाड़ का अधिकार हो गया और 22 वर्षीय राव जोधा अपने भाइयों सहित मेवाड़ से मारवाड़ की सुरक्षित सीमा में आ गये. लेकिन अपना राज्य पुनः पाने के लिए मेवाड़ की सेना से उनका युद्ध 15 वर्षों तक चलता रहा और आखिर 1553 ईं. में मंडोर पर विजय प्राप्त करने में वे सफल हुए. धीरे-धीरे अपने राज्य का विस्तार करने हेतु राव जोधा ने आस-पास के क्षेत्रों पर भी अधिकार कर लिया. तब राणा कुम्भा ने एक संधि प्रस्ताव रखा जिससे मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा का स्थायी निर्धारण हो सके तथा दोनों राज्यों में शांति बनी रहे जिसे आवल-बावल की संधि कहते है यानी जहाँ तक आम-आंवला के पेड़ होंगे वह भूमि मेवाड़ की होगी और जहाँ तक बबूल के पेड़ होंगे वहाँ तक मारवाड़ की सीमा होगी.

इसके बाद राव जोधा ने अपने साहस और बुद्धि से मारवाड़ का उद्धार करने में लगा गये. मंडोर किले को असुरक्षित जानकर उन्होंने एक नया किला बनाने का निर्णय लिया. विभिन्न बुध्दिजीवियों से विचार-विमर्श करके मंडोर से 8 किलोमीटर दूर चिड़ियाटूंक की पहाडियों पर दुर्ग बनाने का निश्चय किया. 1459 ईं. में राव जोधा ने दुर्ग की नींव रखी. धरातल से करीब 125 मीटर की ऊंचाई पर मयूर की आकृति में बहुत ही सुन्दर, कलात्मक और अजेय किले का निर्माण हुआ जिसे मेहरानगढ़ किला कहा गया. दुर्ग निमार्ण के साथ ही राव जोधा ने एक नगर का भी निर्माण करवाया जो उनके नाम पर जोधपुर कहलाया जो तत्कालीन मारवाड़ की राजधानी के रूप में जाना गया. नगर की सुरक्षा के लिए उन्होंने परकोटे (चार-दीवारी) का निर्माण भी करवाया.

राव जोधा को माँ चामुंडा के प्रति अपार श्रद्धा थी अतः 1460 ईं. में उन्होंने मेहरानगढ़ दुर्ग में माँ चामुंडा की प्रतिमा स्थापित करवाई और इसके लिए एक मंदिर का निर्माण भी करवाया.

दुर्ग-निर्माण के साथ ही राव जोधा ने मारवाड़ को सुरक्षित और संगठित बना दिया था जिससे मारवाड़ कभी बाहरी शक्तियों द्वारा विजय नहीं किया जा सका. राव जोधा के वंशजों ने भी मारवाड़ और जोधपुर के विकास और विस्तार में समय-समय पर अपना अमूल्य योगदान दिया था और इसे भारत के तीसरे सबसे बड़े राज्य की श्रेणी में शामिल कर दिया था.

राव जोधा ने एक सफल शासन का उदाहरण दिया था, जिसमें शौर्य, साहस, कला, विनम्रता, राज्य और प्रजा की सुरक्षा के लिए समर्पण का भाव निहित था. अपने भाईयों और पुत्रों के साथ विभिन्न राज्यों का बंटवारा कर मारवाड़ को अजेय और अमर बनये रखा. सन् 1489 में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा का निधन हुआ.

राव जोधा के वंशजों ने 490 वर्षों तक जोधपुर पर विकासशील और सफलतापूर्वक शासन किया. इसकी सुरक्षा और विकास के लिए हमेशा तत्पर रहे और समय के साथ-साथ नवीन और आधुनिक विकास में योगदान देते रहे है.

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Saurabh Soni

24jun👶 खावण खंडो (Foodie) 😋Blogger, Video Editor, Animal Lover & Part-Time Motivator 😜

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