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What is Sheetla Saptami ? क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार, जोधपुर में “कागा मेला” क्यों लगता है ? History of Kaga Mela| क्यों इसे ‘बासोड़ा’ भी कहा जाता है ? Festival of Jodhpur

What is Sheetla Saptami ? क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार, जोधपुर में “कागा मेला” क्यों लगता है ? History of Kaga Mela| क्यों इसे ‘बासोड़ा’ भी कहा जाता है ? Festival of Jodhpur
Saurabh Soni

भारत का एकमात्र ऐसा पर्व जिस दिन माता को ठण्डा/बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और वही भोजन श्रद्धालुओं द्वारा खाया भी जाता है. आइये जानते हैं क्या है इस पर्व का महत्व ?

माता-शीतला, जिन्हें चर्म रोग(ओरी-चेचक) की देवी कहा जाता है, जो शीतलता और स्वच्छता की प्रतीक है. चर्म-रोग सम्बन्धी बीमारियों से बचने के लिए शीतला माता की अर्चना की जाती है. मान्यता के अनुसार उन्हें एक दिन पूर्व बना ठण्डा-बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और स्वयं भी वह भोजन खाया जाता है. चूँकि इस दिन ठण्डा और बासी भोजन खाया जाता है इसलिए इसे बासोड़ा भी कहा जाता है. बासी भोजन का अर्थ बदबूदार या ख़राब भोजन नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है एक दिन पुराना ठण्डा भोजन जो ख़राब नहीं होता है. इसलिए बासी भोजन के साथ स्वच्छता का भी पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए.

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शीतला-सप्तमी का यह पर्व होली के सात दिन बाद चैत्र कृष्ण सप्तमी के दिन पुरे भारत में मनाया जाता है. परन्तु जोधपुर में यह पर्व एक दिन बाद अष्टमी के दिन मनाया जाता है. इसका कारण है कि 247 वर्ष पूर्व जोधपुर के तत्कालीन महाराजा विजयसिंह के पुत्र की मृत्यु इसी दिन चर्म-रोग की वजह से हो गयी थी. इसलिए इस दिन आँख(आकत) हो गयी अतः जोधपुर में बासोड़ा दूसरे दिन मनाया जाता है.

जोधपुर में शीतला माता का एकमात्र मंदिर नागौरी गेट के कागा क्षेत्र में स्थित है अतः शीतलाष्टमी का पर्व कागा-मेले के नाम से भी प्रसिद्ध है. यह मेला मुख्यतः 10 दिनों तक चलता है. इस वर्ष यह मेला 16 मार्च 2020 से शुरू होगा. जोधपुर और आस-पास के गांवों से लाखों श्रद्धालु माता का दर्शन करने के लिए आते हैं.

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मारवाड़ में ठण्डा के रूप में कई प्रकार के व्यंजन और पकवान बनाये जाते है.जिनमें मुख्य रूप से पचकुटा की लांजी, पूरी, सोगरा, घाट, राब, दही बड़े, कैरी-पाक, कांजी बड़े, खाजा, मठरी, पापड़, खिचिया, सलेवड़े इत्यादि, जो एक दिन पहले ही तैयार कर के रख दिए जाते हैं और दुसरे दिन शीतला-माता, ओरी-माता, अचपड़ा-माता या पंथवारी-माता को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.

भारत में वर्षभर में कितने ही त्यौहार मनाये जाते है और हर त्यौहार और पर्व का महत्व, समय और मौसम के अनुसार विशेष होता है. परन्तु हर पर्व में कुछ न कुछ भ्रांतियां भी जुड़ ही जाती हैं, जिनका सभी को ध्यान रखना चाहिए.

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Saurabh Soni

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