मैं हूँ घंटाघर, शहर के मध्य में स्थित जोधपुर का दिल, जो निरंतर चलता ही रहता है या यूँ कहो की धड़कता ही रहता है. शहर के सबसे व्यस्ततम बाजार सरदार मार्केट के बीच में स्थित तथा देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण और आश्चर्य का केंद्र हूँ. एक ऐतिहासिक विरासत हूँ, स्थापत्य कला का अजूबा हूँ. त्योंहारों की रौनक का आगाज भी हूँ और समापन भी. आज मैं जोधपुर में शॉपिंग का केंद्र बिंदु हूँ. जीवन की अधिकतर जरूरी चीजें आप यहाँ से खरीद सकते है.
घंटाघर का निर्माण महाराजा सरदार सिंह जी ने सन् 1910 में करवाया और 1912 में यह बनकर तैयार हुआ. इसके चरों तरफ 25-25 दुकानें है जिन्हें किराये पर दे दिया गया. 98 फीट ऊंचा यह घंटाघर तीन मंजिला है और तीसरी मंजिल पर 6 फीट की घड़ी लगी है जो लोहे के दो बड़े गर्डरों पर टिकी हुई है. इसमें लगी घड़ी बम्बई की लुण्ड एंड ब्लोक्ले तुर्रेट क्लोकमैन कंपनी ने बनाई थी. यह अनोखी घड़ी विश्व में मात्र दो ही जगह पर है. यह घड़ी आम घड़ियों की तरह फ़नर से नहीं चलती, सप्ताह में एक बार इसमें चाबी भरी जाती है.
15 मिनट होने पर दो टंकोरे, आधा घंटा होने पर चार टंकोरे, पौन घंटा होने पर छः टंकोरे और एक घंटा पूरा होने पर आठ टंकोरे बजते है और हर घंटे की आवाज अलग होती है जो इसकी खासियत है. घड़ी का पेंडुलम 50 किलो वजनी है. इसकी चाबी का वजन 10 किलो और इसमें लगे लोहे की तीन ईंटों का वजन 2, 1, और 1.25 क्विंटल है. उस समय इस घड़ी की कीमत करीब 3 लाख रूपये थी और आज यह लगभग 18 करोड़ रूपये के बराबर है.
1989 में स्वायत्तशासन विभाग ने घड़ी को चालू रखने की जिम्मेदारी मो. इक़बाल और उनके परिवार को सौंपी थी क्योंकि एक बार जब यह घड़ी बंद हो गयी थी तब कंपनी भी इसे ठीक नहीं कर पायी थी तब मो. इकबाल ने इसके ख़राब कीरों को नया बनाया और घड़ी को पुनः चालू कर दिया था. आज इस घंटाघर की रख-रखाव का कार्य नगर-निगम के अंतर्गत है | 2014 में घंटाघर को आमजन के लिए खोल दिया गया, पर्यटक 10 रूपये का टिकिट लेकर तीन मंजिला ईमारत को अच्छे से देख सकते है. घंटाघर जोधपुर के प्रसिध्द बाजारों में से एक है.
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